yahan wahan
एक पुरानी फिल्म सी घिसी , तेज रंगों से लिपटी ज़िन्दगी
और कभी लगता है की dubbing ही खराब है
आवाज़ पहले आती है और लोग जैसे चुप से लगते हैं
और गन्ने के juice की दूकान पे धुप बत्ती सी सुलगती सी ज़िन्दगी
कभी दिवाली की झालर सी टिमटिमाती जैसे जान ही न हो
और दादाजी के रेडियो पे बजते रफ़ी-लता के गाने की तरफ धुंधली मगर कितनी सुकून भरी ज़िन्दगी
और कहीं bus के horn सा शोर मानो जैसे आज ही आगे निकल जाएगी
पेट्रोल pump पे चलते जाली 500 के नोट सी तेज़ भागती ज़िन्दगी
कभी रुक जाती येः कह के "दो पांच के हैं क्या"?
कटते प्याज सी आँखों में चुभती ज़िन्दगी
और कभी तो लगता है की दर्द तो बहोत है पर आंसू सूख से गए हैं
चाट में पड़े मसाले सी चटपटी येः ज़िन्दगी
और कभी मिठास बासी खीर की
कभी दीवार के छूटते चुने सी हाथों में चुपकी ज़िन्दगी
जैसे बिछड़ते हुए अपनों की यादें हो
कभी लम्बी लम्बी बातों से बहोत छोटी सी लगती ज़िन्दगी
कभी चाँद लम्हों को तरसती प्यासी सी
माँ के हाथ से तेल की चम्पी सी नशीली ज़िन्दगी
और कभी जैसे पहली बार पकाई कच्ची बिना नमक की सब्जी
और street light की मटमैली रौशनी में अधजले पेड़ों सी रोशन ज़िन्दगी
तो कभी highway पर खिड़की से आती ठंडी हवा सी सुहानी
और कभी छत पे लटके पुराने पंखे सी, रुक रुक के गड गड करती
जैसे एकदम से कोई बात याद आई हो
कभी खली मकान सी अकेली ज़िन्दगी
और आपस में बात करतीं दीवारें
और समझ में न आने वाले फिरंगी गाने सी ज़िन्दगी
जिसकी धुन नचा ही देती है
उस पुरानी पढ़ी कविता की याद दिलाती ज़िन्दगी
जो आज भी उतनी ही सही लगती है
us purani padhi kavita ki yaad dilati zindagi
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