Kaayda | कायदा

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लकीरों में बाँट देतें हैं हमेशा ,
कहतें हैं इससे आसानी होती है
चलता रहता है
यूं ही चलता रहता है

फिर थोड़ी देर बाद,
 चला जाता है कोई,
 लकीरों के बहार |
... कुछ मुह बनातें हैं
कुछ  न ध्यान देने का बहाना करते हैं
और कुछ कहते हैं "बहोत खूब "
चलता रहता है
यूं ही चलता रहता है

फिर विवाद होते हैं
और दायरे बढ़ा दिए जातें हैं
और एक वहम सा होता है
"इससे आसानी होती है"
और फिर कुछ देर तक
चलता रहता है
यूं ही चलता रहता है

जगह से ज्यादा लकीरें हैं
परिभाषित है सब कुछ .....
इतना परिभाषित कि ,
परिभाषा क्या है यह भी न मालूम
फिर कोई और बहार निकलेगा ,
और फिर आसानी कि दुहाई दे कर............

क्या क्या परिभाषित करोगे
कितनी लकीरें खीचोगे
और ऐसा  कब तक चलेगा ?

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