माने अगर आंकड़ों की
माने अगर आंकड़ों की तो उसने,
किया नहीं कभी किसी भला
न रोटी दी,
न कपडे ,
न नींद दी ,
न बिस्तर
बस कभी कभी आकर ,
आंसू पोंछ देती
फिर भी जाने क्यूं उसके लिए,
सब जैसे खलबलाये बैठें हैं,
थाली बजने लगते हैं ,
ताली बजने लगते हैं ,
कुछ समझ न आये तो,
मोबाइल ही जलाने लगते हैं,
कइयों ने कई किये सवाल उससे,
वह बस मुस्कुरा के आगे निकल गई,
अपना नाम उसने शायद ,
उम्मीद बताया था
किया नहीं कभी किसी भला
न रोटी दी,
न कपडे ,
न नींद दी ,
न बिस्तर
बस कभी कभी आकर ,
आंसू पोंछ देती
फिर भी जाने क्यूं उसके लिए,
सब जैसे खलबलाये बैठें हैं,
थाली बजने लगते हैं ,
ताली बजने लगते हैं ,
कुछ समझ न आये तो,
मोबाइल ही जलाने लगते हैं,
कइयों ने कई किये सवाल उससे,
वह बस मुस्कुरा के आगे निकल गई,
अपना नाम उसने शायद ,
उम्मीद बताया था
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