कुछ था तो
बैठ आईने के सामने
गुनगुना रहा था
और पी रहा था
ज़हर भी
और पी रहा था
दवा भी
धीरे धीरे ।।
और इस तरह
था वो
खुद का
तफरीबाज़ भी
तमाशाई भी
कातिल भी
और मुहाफ़िज़ भी।
बहुत वक़्त था
हर तरह से फुरसत थी
सब समझ में ही था जैसे
बस ये नही मालूम था कि
खुद का खुद पे कितना उधार हैं ।
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