मलाल न रहे

जानता हूं ,

उसकी अजीब सी जुबां है।

जानता हूं ,

वोह ढंग से कुछ कह नहीं पाता।

और जो कहता है 

वोह भी अधूरा अधूरा सा,

और यह भी जानता हूं,

की तुमने बहुत कोशिश की।

और मानता हूं

तुम्हारे जज़्बात भी सही हैं अपनी जगह।


पर फिर भी, जब फुर्सत मिले 

तो सुनो।

सुनो उसे फिर से।

सुनो उसके बेमतलब से तर्क 

सुनो उसे बिना किसी फर्क।


आएगा एक समय , एक लम्हा,

जब सारे , मतलब समझ आएंगे


हो सकता है ,

तब तक शायद देर हो गई हो।

पर फिर भी ,

कम से कम उसे न समझ पाने का कोई मलाल तो न होगा।


वोह तुम है।

तुम वोह हो।

या यूं कहूं ,

सब सभी है।


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