चाँद तक सड़क
मनमौजी होना भी एक सुपरपावर हो जैसे
तो बस उठा बस्ता
किए बिना विचार निकल पड़े
और कही भीड़ वाली सड़के
और कभी बियाबान
और कभी बस्ती
कट रहा था रास्ता
अब शाम हो गई थी
और थी गाड़ी चलाने की थकान भी
तो रुक गया एक गांव में
चाय पी , साथ कुछ भजिया(पकोड़े)
और टूटी फूटी ग्रामीण भाषा के कुछ संवाद भी चाव से खाए.
बातों बातों में रात बिताने का इंतजाम भी हो गया .
और क्युकी मनमौजी होने की सिद्धि थी
तो एक दिन रुक भी गया
भोले भाले सीधे साधे सरल लोग
साफ हवा
और ज़ायका था पानी में
ऐसा था एक गांव जहां मैं घूमते घूमते पहुंचा
बहुत सुंदर नही
पर था जैसे लिए हुए अपने आप में एक सच्चाई, एक खालिसपन सा
वो खालिसपन वो गवारपन जो है अब एक विलुप्त होती हुई प्रजाति।
मजेदार थी वो सर्दियों की रात
क्योंकि संजोग से आई थी बगल वाले गांव से गवाइयों की टोली
एक गाना और दूसरा, न समझ आने पर भी अच्छा ही लगता
बस तभी गौर किया मैंने
वो गांव पहाड़ी के बीच में था
एक सड़क नीचे और दूसरी मानो चांद तक जाती थी।
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