pak rahi thi पक रही थी
पक रही थी धीमी आंच पर ज़िन्दगी।
और जायका उम्मीदों सा बढ़ रहा था।
पड़े थे मसाले सपनो वाले ,
और हां तजुर्बे की खटाई भी थी।
सौंधापन था, अपनो के साथ का,
और स्वार्थ की मिर्ची भी थी।
जल्दी ही तैयार हो जायेगी,
और फिर सब मज़े लेंगे।
पर फिलवक्त तो,
पक रही थी धीमी आंच पर ज़िन्दगी।
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