डैफोडिल्स - विलियम वर्ड्सवर्थ
डैफोडिल्स , एक बड़ी ही पुरानी और प्रसिद्ध कविता है।
जो की शायद हिंदी में अनुवादित भी हुई हो। परंतु इस पोस्ट मै अपने तरीके से इसे हिंदी में लिखने का प्रयास कर रहा हु, त्रुटियों के लिए अभी से क्षमा।
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डैफोडिल्स (नर्गिस)
भटका मानो अकेले बादल सा,
विचरता कभी घाटी, कभी चोटी
अचानक से दिखी भीड़
वे मेजबान, सुनहरे नर्गिस
ताल के किनारे, पेड़ों की ओट में
पुरवाई में थिरकते, नाचते
जैसे आकाशगंगा में निरंतर
चमकते, टिमटिमाते तारे
वैसे ये, एक अनंत कतार में
फैले थे ताल के सिरे
सिर उचका, मटकते, ठुमकते
उनकी पड़ोसी लहरे भी झूमीं,
पर फीका था उनके आनंद नृत्य के आगे,
ऐसी संगति में भला कवि ,
आह्लादित कैसे न हो।
मै निहारता, और निहारता, , बिना सोचे
क्या नफा मिला इस नजारे से ।
अक्सर, जब पसरा होता हूं सोफे पे ,
खाली दिमाग या, गहन चिंतन में,
आंखों पे झलक से आते हैं,
जो है एकांत का सुख,
और मेरा दिल भी भरता है खुशी से,
और जैसे नाचता है , उन नार्गिसों के साथ।
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